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जय भीम’ के जनक बाबू हरदास लक्ष्मणराव नगराले ने सबसे पहले कब और क्यों बोला था जय भीम? बाबू हारदास का जीवन परिचय, कहानी, इतिहास


कौन थे बाबू हरदास लक्षमण नगराले?जय भीम का इतिहास, जय भीम का मतलब, जय भीम का महत्व और अस्तित्व, जय भीम का विचार कहां से आया?जय भीम की उत्पत्ति, जय भीम कैसे शुरू हुआ, बाबू हरदास जयंती, सबसे पहले जय भीम किसने बोला साल 1933-34 का महत्व, Who was Babu Hardas Laxman Nagrale? History of Jai Bheem, Meaning of Jai Bheem, Importance and existence of Jai Bheem, Where did the idea of ​​Jai Bheem come from? Origin of Jai Bheem, How Jai Bheem started, Babu Hardas Jayanti,History of jai bhim, First of all Jai Who told Bhim the importance of the year 1933-34?


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जय भीम बहुजन समाज की एक नई पहचान है जो सबको एकता के सूत्र में जोड़ देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ये जय भीम का नारा कहां से आया? वो कौन था जिसने सबसे पहले जय भीम बोला था? और कैसे जय भीम आज बहुजन समाज की पहचान बन गया है? बाबू हरदास जी की जंयती पर जानिए आखिर क्यों कहा जाता है इनको "जय भीम" का जनक?



आज जय भीम नारे के जनक बाबू हरदास लक्षमणराव नगराले जिन्हें बाबू हरदास के नाम से जाने जाते हैं आज बाबू हरदास की जयंती है। 6 जनवरी 1904 को नागपुर के पास जन्म लेने वाले बाबू हरदास ने ही जय भीम का नारा दिया था। लेकिन उनके दिमाग में ये नारा आया कैसे ? क्यों उन्होंने सिर्फ जय भीम को ही चुना? और क्या बाबा साहब डॉ भीम राव आंबेडकर भी जय भीम बोलते थे? बाबू हरदास की जयंती पर जानिए ‘जय भीम’ की बेहद दिलचस्प कहानी।



बाबू हरदास लक्षमणराव नगराले कौन थे? 



बाबू हरदास का जीवन परिचय (Babu Hardaas Biography in Hindi):-


गूगल पर जब आप जय भीम सर्च करते हैं तो इसकी उत्पत्ति के बारे में बहुत लेख और खबरें मिलती हैं। अलग-अलग लोगों ने तरह-तरह के दावे किये हैं… इसलिए हमने इसकी पुख्ता जानकारी हासिल करने के लिए खूब पड़ताल की। इस बारे में हमें जानकारी मिली कि असल में जय भीम शब्द की उत्पत्ति महाराष्ट्र में हुई थी और इस जय भीम शब्द को जन्म देने वाले थे बाबू हरदास लक्षमण नगराले।


बाबू हरदास वह शख्स है जो बाबा साहेब के साथ रहे हैं। वो 1921 में हुए सामाजिक आंदोलन में भी बाबा साहेब के साथ थे। बाबू हरदास लक्ष्मण नगराले बाबा साहेब के साथ आंदोलनों में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया करते थे। ऐसा नहीं था कि बाबू हरदास किसी-किसी आंदोलन में बाबा साहेब के साथ होते थे। बल्कि 1930 में हुए नासिक कालाराम मंदिर सत्याग्रह और वर्ष 1932 में पूना पैक्ट के दौरान भी बाबू हरदास ने बाबासाहब अम्बेडकर के साथ रहकर एक अति महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी।



बाबू हरदास के मन में जय भीम का विचार कहां से आया।Where did the idea of ​​Jai Bhim come from in the mind of Babu Hardas?



लेकिन अब सावल यह उठता है कि आखिर बाबू हरदास को जय भीम का विचार आया कहां से आया? कैसे उनके दिमाग में यह विचार आया कि ऐसा भी कोई शब्द होना चाहिए जो सभी को समानता का एहसास दिलाए और लोगों को एक साथ एकता में बांधे रखने में भी मदद करें।


असल में बाबू हरदास के मन में जय भीम शब्द का संबोधन पहली बार एक मुस्लिम व्यक्ति को देखकर आया था। हुआ यूं था कि उन्होंने मुस्लिम समाज के कार्यकर्ता को एक दूसरे मुस्लिम भाई से ‘अस्सलाम-अलेकुम’ कहते हुए देखा। जिसके जवाब में दूसरा मुस्लिम वक्ति भी ‘अलेकुम-सलाम’ कह कर संबोधन कर रहा था। बस यही वह पल था जिसे देखकर बाबू हरदास ने सोचा कि मुस्लिम भाईयों की तरह हमें भी एक दूसरे का अभिवादन करना चाहिए।



जय भीम का जवाब बल भीम से कब किया जाता था? 



लेकिन तभी उनके दिमाग में तुरंत एक विचार उत्पन्न हुआ कि आखिर अभिवादन में कहना क्या चाहिए? उनके मन में आया है कि हम लोग भी एक दूसरे से ‘‘जय भीम’’ का अभिवादन कहेंगे। इसके बाद उन्होंने कार्यकर्ताओं से कहा कि, मैं आप सभी लोगों से अभिवादन के तौर पर आपसे ‘जय भीम’ कहूँगा और आप उसके जवाब में ‘बल भीम’ कहना। तभी से यह अभिवादन शुरू हो गया। लेकिन अब एक सवाल फिर से आप सभी के मन में उठ रहा होगा कि हम लोग अभिवादन में जय भीम बोलते है तो जवाब में भी जय भीम बोला जाता है। लेकिन मेरे द्वारा दी जा रही जानकारी के अनुसार जय भीम के अभिवादन में बल भीम कहना था। अब इसके पीछे भी एक कारण है।



बल भीम के बदले जय भीम कब से शुरू हुआ? 



असल में हुआ कुछ यूं कि शुरूआत में बहुजन समाज में जय भीम के संबोधन में बल भीम ही कहा जाता था। लेकिन समय के साथ साथ समाज के लोगों ने इसमें परिवर्तन कर दिया और उन्हें पता ही नहीं चला। वह बल भीम के बदले जय भीम ही बोलने लगे जिसके कारण बल भीम प्रचलन से धीरे धीरे गायब होता गया और जय भीम ने उसका स्थान ले लिया। तब से लेकर आज तक ‘जय भीम’ आभिवादन चल रहा है। जय भीम का यह नारा आज भी देश के 85 प्रतिशत मूलनिवासी बहुजन समाज को एक धागा में माला की तरह एक साथ रखने का काम कर रहा है।



साल 1933-34 का महत्व और बाबू हरदास



आपको बता दूं कि जय भीम का नारा बाबू हरदास ने साल 1933-34 में समता सैनिक दल को नागपुर में दिया था। और तभी से ‘जय भीम’ का नारा हर जगह छा गया। जय भीम का अर्थ होता है भीम की जीत हो या फिर डॉ. भीम राव अंबेडकर जिंदाबाद। अब आपको वह जानकारी देता हूं जिसे जानकर आप प्रसन्न हो जाएंगे।


लेकिन इस विषय पर एक मत और है। times of india द्वारा प्रकाशित इंरव्यू में जेएऩयू के प्रोफेसर विवेक कुमार के मुताबिक जय भीम शब्द की उत्पत्ति बाबा साहेब के जन्म से पहले ही हो चुकी थी। यानि लगभग 73 साल पहले 1818 में। उनका यह इंटरव्यू April 18, 2016 को प्रकाशित किया गया। jnu के Centre for the Study of Social Systems, School of Social Science में बतौर प्रोफेसर विवेक कुमार ने बताया कि जय भीम का नारा पहली बार कोरेगांव के युद्ध में 1 जनवरी 1818 में बोला गया था।



यह युद्ध पेशवा और ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुआ था। जेएनयू के प्रोफेसर विवेक कुमार ने इंटरव्यू मे बताया कि युद्ध के दौरान महार सिपाही ने (तत्कालिक ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का भाग) भीमा नदी पार करने के बाद जय भीम का उद्घोष किया। यह नारा उन्हें नील नदी पर विजय प्राप्ति के लिए प्रोत्साहित करता था। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि महार सेना ने पेशवा को हरा दिया था। बाबासाहेब भी हर वर्ष पुणे स्थित इस जगह जा कर महारों के द्वारा प्रदर्शित नुकरणीय वीरता को पुष्पांजलि अर्पित करते थे। प्रो. विवेक ने आगे बताया कि 1936 में इंडिपेंडेट लेबर पार्टी (आईएलपी) की स्थापना के बाद, जब बाबासाहेब मुंबई चॉल में अपना जन्मदिन मना रहे थे तो उनके एक समर्थक ने शुभकामना देने के लिए जय भीम बोला जिसके बाद यह नारा बढ़ता चला गया।





जय भीम का महत्व और अस्तित्व? 



जय भीम का नारा आम्बेडकरवादियों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाला एक अभिवादन नारा है। खासकर उन लोगों द्वारा जिन्होंने बाबासाहेब आम्बेडकर से प्रेरणा लेते हुए अपने धर्म को बदलते हुए बौद्ध धर्म अपनाया। इतना ही नहीं कुछ ऐसे भी हिंदू है जो बाबा साहेब के विचारों और उनकी प्रतिभा से प्रभावित होकर जय भीम के नारे का संबोधन करते हैं। जय भीम की कहानी यहीं खत्म नहीं होती। इस शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले एक कवि बिहारी लाल ने अपनी कविता में भी किया। और लिखा….

नवयुवक कौम के जुट जावें सब मिलकर कौम परस्ती में,

जय भीम का नारा लगा करे भारत की बस्ती-बस्ती में ।



आपके लिए बड़ा सवाल, जय भीम बोलने में शर्म….



जय भीम आज काफी पॉपुलर नारा बन चुका है… आपसी अभिवादन के अलावा सामाजिक न्याय से जुड़े मसलों पर जितने आंदोलन होते हैं, आपको उसमें जय भीम का नारा ज़रूर सुनाई देगा। लेकिन जय भीम को लेकर आज भी समाज के एक बड़े तबके में सहज़ता नहीं है। बहुजन समाज के भी बहुत से लोग सार्वजनिक जगहों पर जय भीम बोलने से कतराते हैं। अगर आप किसी गैर दलित को नमस्ते की जगह जय भीम कहें, तो शायद ही वो इसके जवाब में जय भीम कहे…ऐसे में ज़रूरत है कि इस नारे को लेकर हम और सहज़ हों और इसे बोलते वक्त गर्व महसूस करें। हमारा उद्देश्य किसी को ठेस पहुंचाना नहीं है और ना ही किसी को जबरदस्ती जय भीम का संबोधन करने के लिए कहना है। आप चाहे तो इसे प्रयोग कर सकते हैं या नहीं भी, यह पूरी तरह आप पर निर्भर करता है।


FAQ-

Q: जय भीम के जनक कौन है?

Ans: बाबू हरदास ने भीम विजय संघ के श्रमिकों की मदद से अभिवादन के इस तरीके को बढ़ावा दिया। जय भीम का नारा सन् 1935 में बाबू एल एन हरदास ने ही सबसे पहले बड़े उत्साह से उच्चारित किया था। उन्होंने आंदोलन के कार्यकर्ताओं को एक-दूसरे के साथ “जय भीम” कहने के लिए प्रेरित किया और इसे एक नये सोच की प्रतीक बनाया।


Q: जय भीम कौन सी जाति है?

Ans: मोहित पारीक बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर का जन्म हिंदू जाति में अछूत और निचली मानी जाने वाली महार जाति में हुआ था।



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