कबीर दास का जीवन परिचय 2023: उनकी प्रमुख रचनाएं, दोहा... |
कबीरदास का जीवन परिचय एक रोचक और प्रेरणादायक विषय है। कबीरदास ने अपने काव्य और भक्ति के माध्यम से हिन्दू-मुस्लिम समाज में समानता, सौहार्द, सत्य, प्रेम और मानवता का सन्देश दिया।
कबीरदास का जन्म सन् 1398 (संवत 1455) में काशी (वाराणसी) में हुआ था। कुछ मान्यताओं के अनुसार, उनका जन्म लहरतारा (लहर तालाब) के पास हुआ, जहां से नीरू और नीमा नामक मुस्लिम दम्पति ने उन्हें पाल-पोस कर कबीर का नाम दिया।
कुछ मान्यताओं के अनुसार, उनका जन्म मगहर (संत कबीरनगर) में हुआ, जहां पर कोली (मीना) समुदाय के प्रसन्नी (प्रसन्न) और प्रसंनी (प्रसंन) ने उन्हें पाल-पोस कर कमल का नाम दिया।
कबीरदास के गुरु का नाम रामानंद था, जिनसे उन्होंने राम का मंत्र प्राप्त किया। कबीरदास के पत्नि का नाम लोई (लोहिया) था। कबीरदास के प्रमुख शिष्य थे: धर्मदास, पीपा, सैन, सुरदास, मलूकदास, भागोदास, निरंजन, मोहन, कृष्ण, मुक्तिदास, सुन्दरदास, सुरती, केशव, प्रेमानंद, प्रेमदास आदि।
कबीरदास की भाषा में हिंदी की विभिन्न बोलियों के शब्द मिलते हैं, जैसे: राजस्थानी, हरियाणवी, पंजाबी, खड़ी बोली, अवधी, ब्रजभाषा आदि।
कबीरदास की प्रमुख रचनाएं हैं: कबीर साखी, कबीर बीजक, कबीर शब्दावली, कबीर दोहावली, कबीर ग्रन्थावली, कबीर सागर। कुल 112 प्रसंगों में 6000 पंक्तियों पर मुसहत है, प्रसंगों में प्रत्येक प्रसंग प्रति 50-60 पंक्तियों पर मुसहत है, प्रसंगों में प्रति प्रसंग प्रति 5-6 पंक्तियों पर मुसहत है, प्रसंगों में प्रति प्रसंग प्रति 1-2 पंक्तियों पर मुसहत है, प्रसंगों में प्रति प्रसंग प्रति 1-2 पंक्तियों पर मुसहत है, कुल 573 प्रसंगों में 1146 पंक्तियों पर मुसहत है, कुल 523 प्रसंगों में 1046 पंक्तियों पर मुसहत है
कबीरदास का दोहा (Kabirdas's Doha):
दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुःख काहे को होय॥
परमात्मा कबीर जी कहते हैं कि दुःख के समय सभी भगवान् को याद करते हैं पर सुख में कोई नहीं करता। यदि सुख में भी भगवान् को याद किया जाए तो दुःख हो ही क्यों । चाहे कितना ही सुख क्यों न हो, भगवान को नहीं भूलना चाहिए। इसलिए हमें परमात्मा को हमेशा याद करना चाहिए।
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